अमलतास
तुम फूले क्यों?
वाट्सेप पर साहित्यिक समूह साहित्य मंजुषा में समूह
एडमिन मंजुषा मन द्वारा लगाई गई संतोष श्रीवास्तव की कहानी अमलतास तुम फूले क्यों
बेहद पसंद की गई।कहानी की पोस्ट लगाते समय मंजुष जी ने लिखा......
साथियो!! साहित्य मंजूषा में आज गुरुवार
को *समूह के रचनाकार* विषय मे हम पढेंगे आदरणीय *सन्तोष श्रीवास्तव* की कहानी
*अमलतास तुम फूले क्यों*। आज की कहानी पर विस्तृत चर्चा की जा सकती है। सन्तोष जी
एक बहुत ही उम्दा रचनाकार हैं, साहित्य की लगभग सभी विधाओं में उनका हस्तक्षेप है। कहानी मन की कई परतें
खोलती है। रिश्तों पर गहरी चर्चा, प्रेम पर कई प्रश्न उठाती कहानी सोचने पर विवश करती है। मानव मन की
पड़ताल करती कहानी... मनोवैज्ञानिक ढंग से लिखी गई है। कहानी पढ़कर ये अनुमान लगाना
सहज है कि सन्तोष जी को मनोभाव की बेहतरीन समझ है। सन्तोष जी को हार्दिक बधाई और
शुभकामनाएं।
मंजूषा मन
संजय: संतोष जी की कहानी बहुत ही
मर्मस्पर्शी है।
1.हम जो सोचते हैं,
जो चाहते है।उससे हटके घटनाएं होती,लेकिन कारण क्रमवार होता है।
2.प्रेम विवाह में काफ़ी कम लोग ही एक दूसरे का देर तक साथ निभा पाते
है ।
"समझदारी" अंत्यंत आवश्यक है।
3.शहर की चकाचौन्ध हम आजीविका के लिए आत्मनिर्भर होने पर मजबूर करती
है जरूरी भी है।पर कई बार गलत तरीके अख़्तियार कर लेते है,'शार्ट कट'।
4.बेटा कहानी अंत तक अपने पिता जी के साथ रहता। उसके भी आपने वाज़िब
कारण है।
कहानीकर को बधाइयाँ, आप समता में रहे।
भवतु सब्ब मंगलम!
मँजुला
श्रीवास्तव
अमलतास तुम फूले क्यों । आ. संतोष दी की कहानी मन को भावों में बहा
के ले जाती है
विषय. प्यार व वर्तमान जिंदगी के कठोर धरातल की कटु सच्चाई का है
भाषा ,भाव प्रवाह अद्भुत है
कहानी संस्कार और आडम्बर को बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त करती है
गोविंद का समर्पित चरित्र शकुन का त्रियाचरित आदि परिस्थितियों का
सूक्ष्म चित्रण है
प्रकृति प्रेमी लेखिका का देश काल वर्णन बगुत सुनेदर है
आपको हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ
नीरज
जैन
गजब की कहानी मजा आ गया गजब का शब्द विन्यास शाम तक पूरी समीक्षा
लिखूंगा वो सर हिलाने पर नथनी का मोती हिलना बहुत कुछ मेरे अंदर हिल गया बेहतरीन
कहानी शाम को फिर पढूंगा
कांता राय
अमलतास तुम फूले क्यों, अमलतास तो फूला था शकुन के लिए तमाम उम्र, मौसम दर मौसम। अमलतास फूला था केतकी
के लिए भी, जिसने वर्जनाओं को तोड़ा, परम्पराओं को तोड़ा उन सबके लिए
अमलतास खूब फूला था। गोविन्द,
कुणाल और कनु,
जो बँधन की चाह में ठहरे रहें किनारों पर, जिन्होनें ख्वाहिश की घरौंदे की
जिसमें सिमटे हुए रहें वे, सीमित दायरों में असीमित भावनाएँ लिए, उनके लिए अमलतास ठूँठ बनकर ही रहा।
शकुन कहाँ गलत थी?
नरेन्द्र का साथ,पल-पल उसकी जरूरत आखिर क्यों पड़ी शकुन को? क्यों गोविन्द स्वंय को काटता चला गया
उसके कर्मक्षेत्र से खुद को?
जहाँ पति के हर काम में, हर जरूरत पर चाहे वो व्यवसाय हो या
सामाजिक वहाँ पत्नी रूपी औरत सशरीर उपस्थित रहती है लेकिन पत्नी के कर्म क्षेत्र
से पुरूष पति दूरी बना लिया करता है और ऐसे में वह साथी जो विपरित परिस्थितियों
में बाहर उसे सम्भालता है उसके लिए वह कमजोर होती जाती है और ऐसा ही शकुन के साथ
हुआ।
जब शकुन कहती है कनु से कि "कनु, मेरे साक्षात्कार में एक प्रश्न यह भी
शामिल करो...............
........ प्यार कर सकता है?"
मैंने महसूस किया..... कगार टूट रहे थे।"
इन पंक्तियों में शकुन के हृदय की व्याकुलता को तीव्र उभार मिला है, कहानी पढ़ते हुए यहाँ तीखी सुई सी
चुभन मैंने अपने हृदय में महसूस किया है।
कुणाल और गोविन्द यानि बेटे और पति की नजर से यह कहानी बुनी गयी है
जो बेहद संवेदनशील है। पुरूष मन का थाह कहानी की लेखिका पा चुकी है अतः यह कहानी
अपने उत्कर्ष को साबित कर रही है।
जितने पात्र उतनी संवेदनाएँ, इस एक कहानी में कई कहानियाँ छुपी हुई
है।
इस अमलतास ने बिना फूले ही मन को विचलित कर झौआ भर-भर संवेदनाओं की
झड़ी लगा दी है।
बहुत बहुत बधाई प्रेषित है आपको इस सार्थक कहानी के लिए आदरणीया
संतोष जी।
आभारी हूँ आदरणीया मंजूषा मन जी की भी इस कहानी से हमारे अंतर्मन
को जुड़वाने के लिए ।
कविता
वर्मा
अमलतास तुम फूले क्यों बेहद सहज शब्दों में कही गई सशक्त कहानी है।
मानव मन के उतार-चढ़ाव अपने किये के परिणाम और पश्चाताप को व्यक्त करती एक टीस
छोडती कथा। हर कदम का कोई कारण नहीं होता कभी कभी इंसान यूं ही बहा चला जाता है और
जान ही नहीं पाता कब तटबंध टूट गये और राह बदल गई। पीछे हुई तबाही का मंजर देखने
का या तो हौसला नहीं होता या इच्छा।
बधाई संतोष जी
डॉ निहारिका
बहुत बढ़िया कहानी अपनी पूरी संप्रेषणियता से भावों कल झकझोर देती
है । क्या सच में पति पत्नी बन कर प्यार ख़त्म हो जाता है सिर्फ कर्तव्य रह जाता है
। या प्यार वो तलाश है जो खत्म नही होती ।बहुत बढ़िया कहानी बधाई
संतोषजी ।
शिव
सिंह यादव
अमलतास तुम फूले क्यों
आ संतोष जी की कहानी अपने मनोभाव के साथ साथ लेकर चलने वाली कहानी
एक तरफ जहां जीवन की कठोर सच्चाई का खुला वर्तमान एवं उसी के आसपास रहता प्यार जो
धीरे-धीरे कर्तव्य के सामने छोटा होता जाता है प्यार तलाशता रहता अपना ठौर ठिकाना।
अंदर तक झकझोर देने वाली कहानी अपने भाव भाषा के साथ पाठक को हिला देती है खूबसूरत
कहानी के लिए आ संतोष जी को हार्दिक साधुवाद एवं बधाई।
अजय श्रीवास्तव
अमलतास तुम फूले क्यों
जितनी प्रंशसा की जाए कम है ---/हर भाव को आत्मसात किये हुए कहानी
----अद्भुत/ आदरणीय श्रीवास्तव जी की बहुत सुंदर कृति-----इस कहानी को किसी भी
कालखंड के किसी की भी अच्छी रचना से तुलना की जा सकती है-----बहुत बहुत बधाई---/
राजेश
शुक्ला
बेहतरीन बहुत दिन बाद पढ़ने मिली ।
प्रमोद
संतोष जी की भाव धरातल पर अद्भुत कहानी, कहानी के पात्र हौले हौले चहलकदमी
करते मन में उतरते चले जाते हैं,
इनकी शैली में कलकल भी है कलरव भी, तटबंध के मध्य शब्द और भाव का प्रवाह
ध्यातव्य है, बधाई ।
अर्चना
नायडू
सन्तोष दीदी की कहानी। वाह ।वाह। उनकी कहानियों में एक अलग सा
आकर्षण है। शैली तो गज़ब की है ।और क्लाइमेक्स हमेशा की तरह लीक से हट कर है हैम तो
उनसे ही बहुत कुछ सीखते है दीदी ,सादर नमन।
राजेन्द्र
श्रीवास्तव
आदरणीया संतोष जी की यह कहानी भी उनकी अन्य कहानियों की तरह विशेष
कथानक के साथ पाठकों को ऐसी घटनाओं को समझने का एक नया विजन देती है। शीर्षक स्वयं
अपने आप में पूरा सारांश कह देता है।
गोविन्द और कुणाल के चरित्र को बखूबी चित्रित किया है।
नायिका का अपने व्यवहार को उचित बताने हेतु तर्क पात्र अनुरूप हैं।
मैं स्वयं संतोष जी से सीखने का असफल प्रयास कर रहा हूं।
रूपेन्द्र जी आज की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
मानिक
विश्वकर्मा
: संतोष जी ने कहानी-अमलतास तुम फूले क्यों में जीवन की विसंगतियों, कुंठाओं एवं जटिलताओं को स्वाभाविक
ढंग से उद्घाटित किया है। कहानी में नियोजित संवाद पात्रानुकूल एवं प्रसंगानुकूल
हैं।भाषा शैली आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण है। बधाई।पटल पर बेहतरीन कहानी पढ़वाने के
लिये मंजूषा जी को धन्यवाद।
:भावना
सिन्हा
अमलतास तुम फूले क्यों-- मर्मस्पर्शी कहनी है जो जीवन की
विसंगतियों को रेखांकित करती है। सशक्त अभिव्यक्ति के कारण कहानी रोचक और
प्रभावपूर्ण बनी है। पढ़ने में आनंद आया। धन्यवाद ।
रक्षा
दुबे
मानव मन की ग्रन्थियों के ग्रंथ समेटे जबरदस्त कहानी।
कहानी सचमुच बांध
कर रखने वाली तो है ही.... साथ ही शब्द विन्यास बहुत कमाल कर गया..
एक एक किरदार को चित्रित करती कहानी बहुत प्रभावित करती है.
आभार आदरणीय सन्तोष जी...
आभार मंजूषा जी..... ये पटल मेरे लिये लेखन कला सीखने और लिखने की
ललक पैदा करने के लिये एक संस्थान है..
.
मुस्तफा खान साहिल .
ज़िंदगी की हकीकतों के तानेबाने से बुनी बहतरीन प्रेमकथा .बढिया
कथानक भाषा सरल एवं पठनीय कहानी में प्रवाह है संवाद कहानी की जान हैं .
खिलते हैं गुल यहाँ खिलके बिखरने को ...याद आया .
संतोष जी बहुआयामी लेखिका हैं काफ़ी अनुभवी एवं ज़िंदगी से जूझती
हुईं उनमें जीवटता है वे ज़िंदगी के कोमल धागे जुटाती हैं और उन्हें करीने से बुनती
हैं .कहानी चलचित्र की तरह सीधी सही दिशा में चलती है .बढिया कहानी ,मुबारक उन्हें ।
रूपेन्द्र
राज़
मंच पर संतोष दी की कहानी "अमलतास तुम फुले क्यों"मन में
अनेक प्रश्नों के भंवर उठाती हुई कहानी ,संदिग्धता से पात्रा को देखती है ,उसके चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगाती
हुई उसकी स्वच्छंद मानसिकता पर विचारने को विवश करती है। प्रेम- विवाह के पश्चात
जीवन को किन परिस्थितियों में वह समाज सेवा में संलग्न करती है प्रथमदृष्टया उसके
व्यक्तित्व को कहानी में बहुत सुगढ़ता से गढ़ा गया है । किंतु जैस-े जैसे कहानी
आगे बढ़ती है ,उसका चरित्र संदिग्ध होता चला जाता है । पात्र उसका पति जो उसे
चाहता है और उसके प्रेम में अपने परिवार को छोड़ता है और निरंतर उसके साथ कंधे से
कंधा मिला कर खड़ा रहता है ।बच्चों की भावनात्मक ढाल भी बनता है। प्रेम - विवाह के
पश्चात अपने परिवार की तथाकथित क्षुब्धता को इस तरह झेलता है कि अपनी बेटी के
विजातीय विवाह की पीड़ा को उसी शिद्दत से अनुभव करना चाहता है। शकुन अपने कार्य
क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहती है ।जब कोई स्त्री
अपने किसी विशेष कार्य क्षेत्र में आगे बढ़ती है अक्सर देखा गया है उसे विपरीत
परिस्थितियों में किसी पुरुष का साथ अच्छा है, किंतु इस साथ की परिणीति क्या होती है
इस कहानी के माध्यम से कि वह समाज ,परिवार और अपनी मर्यादाओं को लांघते
हुए अपने सहकर्मी को पूरी तवज्जो देती है ।जिसकी पीड़ा उसका पति अनुभव करता है , विरोध नहीं करता बल्कि उससे अलग होकर
उसे पूरा मौका देता है। यहां पर पात्र बहुत ही दयनीय और कमजोर दिखाई देता है। बहुत
ही मनोवैज्ञानिक तथ्यों को तलाशते हुए संतोष दी ने इस कहानी को आगे बढ़ाते हुए एक
ऐसे बिंदु पर छोड़ दिया है, जिस पर कि वह कहानी पठकों के मस्तिष्क में आकार लेती है ।अमलतास के
फूल बिखरे हुए लोगों के पैरों तले रौंदते हुए उसी प्रकार से अनुभव होते हैं ,जैसे सपनों की दुनिया का लुट जाना, तमन्नाओं काम उजड़ जाना। इस कहानी को
बहुत ही खूबसूरती से संप्रेषित भाषा शैली एवं प्रभावपूर्ण चित्रों के माध्यम से
संतोष जी ने लिखा है ।कहानी की भाषा बहुत ही सरल है किंतु कहानी के अंदर का
मनोविश्लेषणात्मक तथ्य बहुत ही मजबूती से उभर कर आया है। आज भारतीय परिवेश में भले
ही इसे हम नकार रहे हैं किंतु जहां तक इस परिवेश में झांक कर देखा जाए तो हम ऐसी
परिस्थितियों से 2/4 अवश्य होते हैं। एक मनोविष्लेषणात्मक सशक्त कहानी के लिए संतोष दी
को हार्दिक बधाई।
:सुशीला
जोशी
" अमलतास तुम फूले क्यो " किसी
जीवन की कोई घटना नही वरन सम्पूर्ण एक जीवन है जिसे सन्तोष श्रीवास्तव जी ने
विस्तार भी पूरे जीवन का ही दिया ।
कहानी का कथ्य किसी चित्र - पटल पर चलती फ़िल्म जैसा जिसमे नायिका
की बेफाई के कारण नायक की बर्बादी बोलती है । प्यार के समय चाँद सितारे तोड़ कर
लाने वाला नायक और सड़क पर प्रेमी का साथ खुश रहने वाली नायिका का प्रेम ज्वार
उतरने के बाद की बर्बादी भी नायिका पर ही केंद्रित है । इस बर्बादी के पीछे शकुन
के आकर्षण में दरार का कोई तो कारण अवश्य रहा होगा जो सन्तोष जी ने स्पष्ट नही
किया । यही आकर्षण जब किसी नायक का होता है तब नायिका की टूटन को महसूस करने वाले
न बच्चे होते हैं और न ही कोई और । उस समय वह कटी पतंग बन कर रह जाती है ।
नारी बहुत विवशता में किसी का सहारा तकती है लेकिन पुरुष कभी तो हर
समय सम्पन्न होते हुए भी भटका रहता है ।
खैर ,यह एक विस्तृत विषय पर जिस पर घण्टो विचार किया जा सकता है ।
इस कहानी की सबसे बड़ी विशेषता उसकी ललित भाषा और काव्यात्मक शैली
है जिसे पढ़ते समय मन लालित्य में रम जाता है । सधी हुई शैली किसी ललित निबंधन जैसा
आंनद देती है शायद इसी वैशिष्ठ्य के कारण सन्तोष जी पुरस्कृत होती रहे ।
मंजुलता
आदरणीय संतोष श्रीवास्तव जी की कहानी अमलतास तुम फूले क्यों....
भावनाओं से पूर्ण कहानी है और शुरू से अंत तक पाठक मन को बांधे रखती
है और उत्सुकता बनाए रखती है की अंत में क्या घटीत होगा....
आदरणीया को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ
अरुणा
दुबे
आदरणीया संतोष जी की हृदयस्पर्शी कहानी पढी।सीधी कहन ,गंभीर कथावस्तु और भाषाई कसाव।अद्भुत
बधाई संतोष जी
अरुण
कुमार दुबे
अमलतास तुम फूले क्यों नहीं बेहद सहज
शब्दों में कही गई सशक्त कहानी है। आ0 सन्तोष जी जिस विधा पर कलम चलाती है
उनकी सख्सियत की तरह वह कृति भी सशक्त होती है ।आपका भाव पक्ष इतना सशक्त है कि
रचना सीधे दिल पर चोट करती है ।मानव मन के उतार-चढ़ाव अपने किये के परिणाम और
पश्चाताप को व्यक्त करती एक टीस छोडती दमदार कहानी। हर कदम का कोई कारण नहीं होता
कभी कभी इंसान यूं ही बहा चला जाता है और जान ही नहीं पाता कब तटबंध टूट गये और
राह बदल गई। पीछे हुई तबाही का मंजर देखने की हिम्मत और इच्छा शक्ति नहीं कर पाता।
हार्दिक बधाई एक सुन्दर कहानी को।बहिन जी का आभार।
साधना दुबे सरगम
संतोष जी की कहानी असलतम तुम फूले
क्यो एक भावात्मक कहानी है शुरूआत से अंत तक पाठक के मन मै कौतूहल मचाये रखने वाली
कहानी है जो पढकर किसी को भी पसंद आ सकती है।
बधाई संतोष जी|
अंत में संतोष श्रीवास्तव ने सभी के
प्रति आभार व्यक्त किया
: आज मंजूषा जी ने साहित्य मंजूषा में मेरी कहानी लगाकर मुझे इतने
सारे पाठक दिए। आभारी हूं मंजूषा जी ।
संजय जी मैं आभारी हूं आपने कहानी की
तह तक जाकर समीक्षा की ।
मंजुला श्रीवास्तव जी आप हमेशा मेरी
रचना को गहराई तक जाकर पढ़ती है और बढ़िया प्रतिक्रिया लिखती हैं आभार ।
नीरज जैन जी आपको नथनी का मोती अंदर
तक हिला गया अच्छा लगा ।
कांता राय जी बेहतरीन समीक्षा। अब तो
अपनी किताब आपको समीक्षा के लिए भेजूंगी।
कविता वर्मा जी बहुत भावभरा आपका
संप्रेषण शुक्रिया।
डॉ निहारिका जी आपकी प्रतिक्रिया से
हौसला मिला आभार ।
शिव सिंह यादव बहुत बढ़िया लिखा आपने
अभिभूत हूं ।
अजय श्रीवास्तव जी शुक्रिया कहानी की
तारीफ मन को भा गई ।
राजेश शुक्ला जी आपका बहुत बहुत आभार।
प्रमोद जी आभार
डॉ सुरेश तिवारी हौसला अफजाई के लिए
आभारी हूं।
अर्चना नायडू जी आपका प्रेम अनमोल है
।
राजेंद्र श्रीवास्तव जी बहुत बड़ी बात
कह दी आपने। आप सक्षम हैं। मैं ही आपसे सीख रही हूं ।
मंजूलता जी कहानी पढ़ने का शुक्रिया ।
मानक विश्वकर्मा जी बहुत शुक्रिया
कहानी आपको पसंद आई ।मेरा लिखना सार्थक हुआ।
भावना सिन्हा जी कहानी पढ़ने में आनंद
आया मैं अभिभूत हूं।
रक्षा दुबे जी, दीपक श्रीवास्तव जी पटल सचमुच सराहना के योग्य है जो आपको लिखने की
प्रेरणा देता है ।
मुस्तफा खान जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे
लिए अनमोल है ।
प्रवेश शुक्रिया , तुमने वक्त देकर कहानी पढ़ी।
रुपेंद्र कहानी को सही रूप देने का
आभार कहानी मनोविज्ञान की ही है ।
सुशीला जोशी जी आपकी शुभकामनाओं का
शुक्रिया