शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

अपने मुँह मियाँ मिट्ठू..और शर्मनाक बयानों का दौर मुम्बई में खत्म... चुनाव सँपन्न। मगर क्या कुर्सी बदलने से ही बदलाव आयेगा? क्या बदलाव महज़  अपने मुँह मियाँ मिट्ठू..और शर्मनाक बयानों का दौर मुम्बई में खत्म... चुनाव सँपन्न। मगर क्या कुर्सी बदलने से ही बदलाव आयेगा? क्या बदलाव महज़ कानूनी चीज़ या प्रशासनिक ढाँचे का नाम है ?नहीं ...हमें खुद को बदलना है। हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा, देश बदलेगा। फिर चाहे केजरीवाल आएँ,राहुल आएँ,मोदी आएँ...क्या फर्क पडता है? सीधी सी बात है ,ये नेता हमारे लिए व्यवस्था की
कुछ बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने वाली मशीनें मात्र ही तो हैं। जब तक हमारे अंदर सही सोच,नैतिकता और समझ विकसित नही होगी तब तक हमारी नियति एक झूठी उम्मीद से दूसरीझूठी उम्मीद के बीच लगातार सफर करती रहेगी और नेताओं की अगली पीढियाँ तरती रहेंगी।